श्वयथु चिकित्सा- (च चि १२)
श्वयथु चिकित्सा- (च
चि १२)
१ चिकित्सा सूत्र-
*निदान परिवर्जन,
*निदान-दोष-ऋतु
के विपरीत आचरण
करना ।
2.सभी प्रकार के शोथों
मे विभीतक फल
मज्जा का लेपन
करने से वेदना
एवं दाह का
शमन हो जाता
हैं ।
३ रोगाधिकार योग-
- *गण्डीरादि अरिष्ट,
- *अष्टशत अरिष्ट,
- *पुनर्नवादि अरिष्ट-(“जीर्णे पिबेद्व्याधिबलं समीक्ष्यं" )
- *फलत्रिकादि/त्रिफलादि अरिष्ट,
- *क्षारगुडिका-(अनुपान-उष्णोदक,त्रिफलाक्वाथ),
- *कंसहरितकी-(मात्रा-१ शुक्ति=४ तो),
- *चित्रक घृत-(श्रैष्ठ शोथनाशक योग),
४ अन्य योग-
- कृष्णादि चूर्ण,
- गुडार्द्र प्रयोग ,(गुड+ आर्द्रक-३० दिन प्रयोग)
- शिलाजतु प्रयोग,
- पटोलमूलादि क्वाथ,
- चित्रकादि घृत,
- जीवन्त्यादि यवागू,
५ पथ्यापथ्य-
*पथ्य- मूंग का
यूष,मकोय,गाजर,मूली,नीम
की पत्ती का
शाक,एक वर्ष
पुराना यव,शालिधान्य,विष्किर/जांगल मांसरस
!
*अपथ्य- नूतन अन्न,नमक,आनूप,जलीय,ग्राम्य
मांसरस,दही,तिल-गुड के
पदार्थ,मदिरा,अम्ल रस,दिवास्वपन,मैथुन।
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